
हिंदुस्तान की कहानी – हिंदुस्तान की कहानी’ पंडित जवाहरलाल नेहरू की सबसे प्रसिद्ध और लोकप्रिय कृतियों में से है। यह पुस्तक विश्वविख्यात ‘दि डिस्कवरी ऑव इंडिया’ का अनुवाद है। हम उनकी पुस्तक हिन्दुस्तान की कहानी को धारावाहिक के रूप में प्रकाशित कर रहे हैं। उम्मीद है धारावाहिक में छोटे आलेख पाठकों को पसंद आयेंगे और वे इस तरह नेहरू के हिन्दुस्तान को पूरा पढ़ पायेंगे। हमें आपकी प्रतिक्रिया और सुझावों का इंतजार रहेगा ताकि हम और बेहतर कर सकें। आज पुस्तक का चैप्टर :४ हिंदुस्तान की खोज भाग १४ : भगवद्गीता
भगवद्गीता महाभारत का अंश है; एक बहुत बड़े नाटक की एक घटना है। लेकिन उसकी अपनी अलग जगह है और वह अपने में संपूर्ण है। यों यह ७०० श्लोकों का छोटा-सा काव्य है, लेकिन विलियम वॉन हंबोल्ट ने इसके बारे में लिखा है कि “मह सबसे सुंदर, शायद अकेला सच्चा दार्शनिक काव्य है, जो किसी मो जानी हुई भाषा में मिलता है।” बोद्ध-काल से पहले जब इसको रचना हुई, तब’ से आजतक इसकी लोकप्रियता और प्रभाव घटे नहीं है, और आज मो इसके लिए हिदुस्तान में पहले-जैसा आकवंण बना हुआ है। विचार और फ़िलसफे का हर एक संप्रदाय इसे श्रद्धा से देखता है और अपने-अपने ढंग से इसकी व्याख्या करता है। मकट के वक्त, जब आदमी का दिमारा संदेह से सताया हुआ होता है और अपने कुहं के बारे में उसे दुबिधा दो तरफ खींचती होती है, वह रोशनी और रहनुमाई के लिए गोता की तरफ और भी झुकता है, क्योंकि यह संकट-काल के लिए लिखी गई कविता है- राजनैतिक और सामाजिक संकटों के अवसर के लिए और उससे भी ज्यादा इन्सान की आत्मा के संकट-काल के लिए। गोता की अनगिनत व्याख्याएं निकल चुकी है और अब भी बरा-बर निकलती रहती हैं। विचार और काम के मैदान के आजकल के नेताओं-तिलक, अरविंद घोष, गांवो ने भी इसके संबंध में लिखा है और अपनी-अपनी ब्याख्याएं दी है। गांधीजी ने इसे अहिंसा में अपने दृढ़ विश्वास का आधार बनाया है, और लोगों ने इसे अहिसा ओर धर्म-कार्य के लिए युद्ध का।
यह काव्य घोर युद्ध शुरू होने से पहले, ठीक लड़ाई के मैदान में, अर्जुन और कृष्ण की बातचीत के रूप में आरंभ होता है। अर्जुन विचलित है, उसकी अंतरात्मा लड़ाई और उससे होनेवाले बड़े संहार का, मित्रों और बंडों के संहार का, खयाल करके सहम उठती है। आखिर यह सब किस-लिए? कौनसे ऐसे फायदे की कल्पना हो सकती है, जो इस नुकसान का, इस पाप का, परिहार कर सके ? उसकी सभी पुरानी कसौदियां जवाब दे ,देती है, वे सभी मूल्य, जिन्हें उसने आंक रखा था, बेकार हो जाते हैं। अर्जुन इन्सान की पीड़ित आत्मा का प्रतीक बन जाता है, ऐसी आत्मा का, जो सभी जमानों में फ़र्ज और इखलाक़ के तक़ाज़ों की वजह से दुविधा में पड़ी रही है। इस शख्सी बातचीत से होते होते हम आदमी के फ़र्ज और सामाजिक आचरण, इन्सानी जिदगी और सदाचार, और हमारा रूहानी नजरिया कैसा होना चाहिए, इन गैर-शख्सी खयालों तक पहुंच जाते हैं। इनमें बहुत कुछ ऐसा है, जो आध्यात्मिक है; और इस बात की कोशिश की गई है कि इन्सानी तरक्की के तीन रास्तों-ज्ञान-मार्ग, कर्म-मार्ग और भक्ति-मार्ग का इसके जरिये समन्वय हो। शायद भक्ति पर औरों की बनिस्बत ज्यादा जोर दिया गया है और एक व्यक्तिगत ईश्वर का रूप भी इसमें दिखता है, हालांकि यह कहा गया है कि वह पूर्ण रूप परमेश्वर का हो एक अवतार है। गोता में खासतोर पर इन्सानी जिंदगी की रूहानी जमीन दिखाई गई है आर इसी भूमिका में रोजमर्रा की जिदगी के व्यावहारिक मसले हमारे सामने आते हैं। यह हमें जिदगी के फ़तों और कर्तव्यों का सामना करने के लिए पुकारतो है, लेकिन हमेशा इस तरह कि इस रूहानी जमीन और विश्व के बड़े मक़सद को नजर अंदाज न किया जाय। हाथ-पर-हाथ रख कर बैठ रहने की बुराई की गई है और यह बताया गया है कि काम ओर जिदगी को युग के सबसे ऊंचे आदर्शों के अनुसार होना चाहिए, क्योंकि हर एक युग में खुद आदर्श बदलते रहते हैं। एक खास जमाने के आदर्श-युग-चनं–का सदा ध्यान रखना चाहिए ।
चूंकि आज के हिंदुस्तान पर मायूसी छायी हुई है और उसके चुप-चाप रहने की भी एक हद हो गई है, इसलिए काम में लगने की यह पुकार खासतौर पर अच्छी मालूम पड़ती है। यह भी मुमकिन है कि जमाने-हाल के लफ्जों में, इस पुकार को समाज के सुधार की और समाज-सेवा की ओर अमली, वेगरज देशभक्ति के और इन्सानी दर्दमंदी के काम की पुकार समझा जाय। गीता के अनुसार ऐसा काम अच्छा होता है, लेकिन इसके पीछे रूहानी मक़सद का हाना लाजिमी है। यह काम त्याग की भावना से किया जाना चाहिए और इसके नतीजों को फ़िक्र न करनी चाहिए। अगर काम सही है, तो नतीजे भं। इसके सही होंगे, चाहे वे फ़ौरन न जाहिर हों, क्योंकि कार्य-कारण का नियम हर हालत में अपना काम करेगा ही।
गोता का संदेसा सांप्रदायिक या किसो एक खास विचार के लोगों के लिए नहीं है। क्या ब्राह्मण और क्या अजात, यह सभी के लिए है। यह कहा गया है कि “सभी रास्ते मुझ तक पहुंचाते हैं।” इसी व्यापकता की वजह से सभी वर्ग और संप्रदाय के लोगों को गीता मान्य हुई है। इसमें कोई बात ऐसी है कि हमेशा नयापन पैदा किया जा सकता है और जमाना गुजरने के साथ पुरानी पड़ने से इसे रोकता है- यह जिज्ञासा और जांच-पड़ताल का, विचार और कर्म का और बावजूद संघर्ष और विरोध के, समतौल क़ायम रखने का कोई खास गुण है। विषमता के बीच में भी हम उसमें एकता और संतुलन पाते हैं और बदलती हुई परिस्थिति पर विजय पाने का रुख और यह इस तरह नहीं कि जो कुछ सामने है, उससे मुंह मोड़ा जाय, बल्कि इस तरह कि उसमें अपने काम के लिए जगह बनाई जाय । ढाई हजार बरसों में, जो इसके लिखे जाने के बाद गुज़रे हैं, हिंदुस्तान के लोगों ने न जाने कितनी तबदीलियां देखी हैं और चढ़ाव-उतार भी देखा है; तजुरवे-पर-तजुरबे हुए हैं, खयाल-पर-खयाल उठे हैं, लेकिन उन्हें हमेशा गोता में कोई जिंदा चीज मिली है, जो उनके तरक़्क़ी करते हुए विचार से मेल खा गई है, जिसमें ताजगी रही है और दिमाग़ के छेड़नेवाले रूहानी मसलों पर जो लागू रहो है।
जारी….