पण्डित जवाहर लाल नेहरुः एक परिचय

प्रचलित नाम- चाचा नेहरु
जन्म -14 नवम्बर 1889
जन्म स्थान – इलाहाबाद ( उत्तर प्रदेश )
माता – स्वरुपरानी नेहरु
पिता – मोतीलाल नेहरु
विवाह – 1916
पत्नी – कमला नेहरु
बच्चे – एक पुत्री ( इन्दिरा गाँधी )
निधन – 27 मई 1964, नई दिल्ली
कार्यकाल – 15 अगस्त 1947 से 27 मई 1964 तक ( मृत्युपर्यन्त )

प्रारंभिक जीवन

पंडित जवाहर लाल नेहरू का जन्म 14 नवंबर सन 1889 को इलाहबाद में प्रसिद्ध बेरिस्टर मोतीलाल नेहरू और स्वरुप रानी के
परिवार में  हुआ। नेहरू जी की दो बहने थी जिनका नाम विजयालक्ष्मी और कृष्ण हथीसिंग है। विजयालक्ष्मी जी राष्ट्र महासभा की
पहली महिला अध्यक्ष बनी थी और कृष्ण हठीसिंग जी एक उल्लेखनीय लेखिका थी जिन्होंने अपने परिवार जनों से संबंधित कई
पुस्तके लिखीं।

शैक्षणिक जीवन

प्रारंभिक शिक्षा घर पर घर पर रह कर ही हिंदी, अंग्रेजी तथा संस्कृत भाषा का ज्ञान प्राप्त किया। इसके पश्चात उन्हें स्कूली शिक्षा
पूरी करने के लिए इंग्लैंड के हैरो स्कूल में भेज दिया गया । नेहरू ट्रिनिटी कॉलेज, कैम्ब्रिज गए और वहां से 1910 में प्राकृतिक
विज्ञान में डिग्री प्राप्त की।

इस अवधि के दौरान उन्होंने राजनीति, अर्थशास्त्र, इतिहास तथा साहित्य का भी अध्ययन किया। बर्नार्ड शॉ, वेल्स, जे. एम. केन्स, मेरेडिथ टाउनसेंड के लेखन ने उनके राजनैतिक सोच पर गहरा असर डाला। 1910 में अपनी डिग्री पूर्ण करने के पश्चात नेहरू कानून की पढ़ाई के लिए लंदन चले गए और ‘इनर टेम्पल इन’ से वकालत किया।इंग्लैंड में नेहरु जी ने 7 साल व्यतीत किए जिसमें वहां के फेबियन समाजवाद और आयरिश राष्ट्रवाद के लिए उन्होंने एक तर्कसंगत दृष्टिकोण विकसित किया।

वकील के तौर पर

लंदन से अपनी शिक्षा पूर्ण करने के बाद नेहरू जी 1912 में भारत लौटे और वकील के तौर पर अपने करियर की शुरुवात की।

वैवाहिक जीवन

8 फरवरी 1916 ईo को नेहरू जी का विवाह कमला नेहरू से हुआ इन्हीं से 19 नवंबर 1917 को एक पुत्री इंदिरा गाँधी का जन्म
हुआ।

राजनीतिक जीवन

1912 में नेहरू जी ने भारत लौटकर इलाहाबाद हाईकोर्ट में बैरिस्टर के रूप में कार्यरत हुए। 1917 में वे होम रूल लीग से जुड़
गए। 1919 में नेहरू जी गांधी जी के संपर्क में आए जहां उनके विचारों ने नेहरू जी को बहुत प्रभावित किया और राजनीतिक ज्ञान
इन्हें गांधी जी के नेतृत्व में ही प्राप्त हुआ, यही वह समय था जब नेहरू जी ने पहली बार भारत की राजनीति में कदम रखा था और
उसे इतने करीब से देखा था। 1919 में गांधी जी ने रोलेट अधिनियम के खिलाफ मोर्चा संभाल रखा था। नेहरू जी, गांधी जी के

सविनय अवज्ञा आंदोलन से बहुत प्रभावित थे। नेहरू जी के साथ उनके परिवार ने भी गांधीजी का अनुसरण किया, मोतीलाल
नेहरू ने अपनी संपत्ति का त्याग कर खाली परिवेश धारण किया। 1920 से 1922 में गांधी जी द्वारा किए गए असहयोग आंदोलन
में नेहरू जी ने सक्रिय रूप से हिस्सा लिया। इस वक्त नेहरू जी पहली बार जेल गए।

उन्होंने 1920 में उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जिले में पहले किसान मार्च का आयोजन किया। 1920-22 के असहयोग आंदोलन के
सिलसिले में उन्हें दो बार जेल भी जाना पड़ा।

1924 में इलाहाबाद नगर निगम के अध्यक्ष के रूप में 2 वर्षों तक शहर की सेवा की। 1926 में उन्होंने इस्तीफा दे दिया। 1926 से
1928 तक नेहरू जी अखिल भारतीय कांग्रेस के महासचिव बने। गांधी जी को नेहरू जी में भारत देश का एक महान नेता नजर आ
रहा था।

पंडित नेहरू सितंबर 1923 में अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के महासचिव बने। उन्होंने 1926 में इटली, स्विट्जरलैंड, इंग्लैंड,
बेल्जियम, जर्मनी एवं रूस का दौरा किया। बेल्जियम में उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के एक आधिकारिक प्रतिनिधि के रूप में
ब्रुसेल्स में दीन देशों के सम्मेलन में भाग लिया। उन्होंने 1927 में मास्को में अक्तूबर समाजवादी क्रांति की दसवीं वर्षगांठ समारोह
में भाग लिया।

इससे पहले 1926 में, मद्रास कांग्रेस में कांग्रेस को आजादी के लक्ष्य के लिए प्रतिबद्ध करने में नेहरू की एक महत्वपूर्ण भूमिका थी। 1928 में लखनऊ में साइमन कमीशन के खिलाफ एक जुलूस का नेतृत्व करते हुए उन पर लाठी चार्ज किया गया था। 29 अगस्त 1928 को उन्होंने सर्वदलीय सम्मेलन में भाग लिया एवं वे उनलोगों में से एक थे जिन्होंने भारतीय संवैधानिक सुधार की नेहरू रिपोर्ट पर अपने हस्ताक्षर किये थे। इस रिपोर्ट का नाम उनके पिता श्री मोतीलाल नेहरू के नाम पर रखा गया था।

उसी वर्ष उन्होंने ‘भारतीय स्वतंत्रता लीग’ की स्थापना की एवं इसके महासचिव बने। इस लीग का मूल उद्देश्य भारत को ब्रिटिश
साम्राज्य से पूर्णतः अलग करना था।1929 में पंडित नेहरू भारतीय राष्ट्रीय सम्मेलन के लाहौर सत्र के अध्यक्ष चुने गए जिसका मुख्य लक्ष्य देश के लिए पूर्ण स्वतंत्रता
प्राप्त करना था।

पंडित नेहरू ने भारत को युद्ध में भाग लेने के लिए मजबूर करने का विरोध करते हुए व्यक्तिगत सत्याग्रह किया, जिसके कारण 31
अक्टूबर 1940 को उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। उन्हें दिसंबर 1941 में अन्य नेताओं के साथ जेल से मुक्त कर दिया गया। 7
अगस्त 1942 को मुंबई में हुई अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी की बैठक में पंडित नेहरू ने ऐतिहासिक संकल्प ‘भारत छोड़ो’ को
कार्यान्वित करने का लक्ष्य निर्धारित किया। 8 अगस्त 1942 को उन्हें अन्य नेताओं के साथ गिरफ्तार कर अहमदनगर किला ले
जाया गया। यह अंतिम मौका था जब उन्हें जेल जाना पड़ा एवं इसी बार उन्हें सबसे लंबे समय तक जेल में समय बिताना पड़ा।
अपने पूर्ण जीवन में वे नौ बार जेल गए।

1928 से 1929 में मोतीलाल नेहरू की अध्यक्षता में कांग्रेस के वार्षिक सत्र का आयोजन किया गया। इस सत्र में दो गुट बने पहले
गुट में नेहरू जी एवं सुभाष चंद्र बोस ने पूर्ण स्वतंत्रता की मांग का समर्थन किया और दूसरे गुट में मोतीलाल नेहरू और अन्य
नेताओं ने सरकार के अधीन ही प्रभुत्व संपन्न राज्य की मांग की। इस दो प्रस्ताव की लड़ाई में गांधीजी ने बीच का रास्ता निकाला।

उन्होंने कहा कि ब्रिटेन को 2 वर्षों का समय दिया जाएगा ताकि वह भारत को राज्य का दर्जा दे, अन्यथा कांग्रेस एक राष्ट्रीय लड़ाई
को जन्म देगी परंतु सरकार ने कोई उचित जवाब नहीं दिया। नेहरू जी की अध्यक्षता में दिसंबर 1929 में कांग्रेस का वार्षिक
अधिवेशन लाहौर में किया गया। इसमें सभी ने एकमत होकर पूर्ण स्वराज की मांग का प्रस्ताव पारित किया। 26 जनवरी 1930 में
लाहौर में नेहरू जी ने स्वतंत्र भारत का ध्वज लहराया।

26 जनवरी 1930 को नेहरू जी ने लाहौर में भारत का झंडा फहराया और इस दिन को स्वतंत्रता दिवस के रूप में मनाने की
घोषणा की यही कारण है कि आजादी के बाद सन 1950 में इसी दिन संविधान को लागू कर गणतंत्र की स्थापना की गयी।
1930 में गांधी जी ने सविनय अवज्ञा आंदोलन का जोरों से आव्हान किया। जो इतना सफल रहा कि ब्रिटिश सरकार को महत्वपूर्ण
निर्णय लेने के लिए झुकना ही पड़ा।

उन्हें 1930-35 के दौरान नमक सत्याग्रह एवं कांग्रेस के अन्य आंदोलनों के कारण कई बार जेल जाना पड़ा। उन्होंने 14 फ़रवरी
1935 को अल्मोड़ा जेल में अपनी ‘आत्मकथा’ का लेखन कार्य पूर्ण किया। रिहाई के बाद वे अपनी बीमार पत्नी को देखने के लिए
स्विट्जरलैंड गए एवं उन्होंने फरवरी-मार्च, 1936 में लंदन का दौरा किया। उन्होंने जुलाई 1938 में स्पेन का भी दौरा किया जब
वहां गृह युद्ध चल रहा था। द्वितीय विश्व युद्ध शुरू होने से कुछ समय पहले वे चीन के दौरे पर भी गए।

1935 में जब ब्रिटिश सरकार ने भारत अधिनियम का प्रस्ताव पारित किया तब कांग्रेस ने चुनाव लड़ने का फैसला किया। नेहरू ने
चुनाव के बाहर रहकर ही पार्टी का समर्थन किया। कांग्रेस ने हर प्रदेश में सरकार बनाई और सबसे अधिक जगहों पर जीत हासिल
की। 1936 से 1937 में नेहरू जी को कांग्रेस का अध्यक्ष नियुक्त किया गया। 1942 में गांधी जी के नेतृत्व में भारत छोड़ो आंदोलन
के बीच नेहरू जी को गिरफ्तार किया गया। जिसके बाद वह 1945 में जेल से बाहर आए। ये अपने राजनीतिक जीवन में कुल 9
बार जेल गए।

जनवरी 1945 में अपनी रिहाई के बाद उन्होंने राजद्रोह का आरोप झेल रहे आज़ाद हिन्द फौज के सेनानियों का कानूनी बचाव
किया। मार्च 1946 में पंडित नेहरू ने दक्षिण-पूर्व एशिया का दौरा किया। 6 जुलाई 1946 को वे चौथी बार कांग्रेस के अध्यक्ष चुने
गए एवं फिर 1951 से 1954 तक तीन और बार वे इस पद के लिए चुने गए।

प्रधानमंत्री के रूप में

15 अगस्त  1947 को भारत को आजादी मिलने के बाद पंडित जवाहर लाल नेहरू को स्वतंत्र भारत का प्रथम प्रधानमंत्री बनाया
गया। नेहरू जी 16 साल 9 माह और 13 दिन तक भारत के प्रधानमंत्री रहे जो कि प्रधानमंत्री के तौर अब तक का सबसे लम्बा
कार्यकाल है। उस समय देश के आगे सबसे बड़ी चुनौती थी देशी रियासतों को भारत में सम्मलित करना जो की अंग्रेजो की नीतियों
के कारण स्वतंत्र हो गयी थी। उस समय देश में कुल 562 रियासतें थी।

भारत का सर्वोच्च सम्मान

1955 ईo में नेहरू जी को भारत रत्न से सम्मानित किया गया।

मृत्यु

अपने कार्यकाल में ही 27 मई 1964 को इनकी मृत्यु दिल का दौरा (तीसरी बार) पड़ने से हो गयी, ये मृत्युपर्यन्त प्रधानमंत्री रहे।

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