यह एक अलग ही तरह की किताब है।यह किसी प्रधानमंत्री की लिखी किताब नहीं है, उनके सरकारी भाषणों का संकलन नहीं है।एक लेखक की, एक प्रकृति प्रेमी की, जनजीवन से जुड़े एक व्यक्ति की लिखी किताब है, उनके राजनीति से इतर लेखों का संकलन है।यह ऐसी किताब है,जो अभी तक जितने भी प्रधानमंत्री हुए हैं, उन्होंने न लिखी, न लिख सकते थे।इसके लिए प्रधानमंत्री होना जरूरी नहीं है, आवश्यक है संवेदनशील होना और राजनीति में इसकी जगह लगभग खत्म हो चुकी है।
आज हमारे प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू का जन्मदिन है। उन्हें याद करने का मुझे यह सबसे उपयुक्त तरीका लगा कि मैं सस्ता साहित्य मंडल से प्रकाशित उनकी किताब’ राजनीति से दूर ‘ की ओर आपका ध्यान दिलाऊं।यह एक अलग ही तरह की किताब है।यह किसी प्रधानमंत्री की लिखी किताब नहीं है, उनके सरकारी भाषणों का संकलन नहीं है।एक लेखक की, एक प्रकृति प्रेमी की, जनजीवन से जुड़े एक व्यक्ति की लिखी किताब है, उनके राजनीति से इतर लेखों का संकलन है।यह ऐसी किताब है,जो अभी तक जितने भी प्रधानमंत्री हुए हैं, उन्होंने न लिखी, न लिख सकते थे।इसके लिए प्रधानमंत्री होना जरूरी नहीं है, आवश्यक है संवेदनशील होना और राजनीति में इसकी जगह लगभग खत्म हो चुकी है।
गूगल पर देखा, यह पुस्तक अभी भी उपलब्ध है,जिसे मैंने कभी बीस-तीस साल पहले खरीदा था। छोटी सी क्राउन आकार की पौने दो सौ पृष्ठों की इस किताब को हर पुस्तकप्रेमी को पढ़ना चाहिए। बहुतों ने इसे पढ़ा भी होगा।
इसमें उनकी तमाम यात्राओं के विवरण हैं। राजकीय यात्राओं के नहीं,एक व्यक्ति जो तमाम समय राजनीति में उलझने को बाध्य है,कैसे कुछ समय अपने लिए निकाल कर यात्राएं करता है। इनमें अनेक आजादी के पहले के वर्षों में रेल से की गई थीं।जिस आदमी की अय्याशियों के तमाम फर्जी किस्से आजकल प्रचारित किए जा रहे हैं,उसने आजादी से सात साल पहले लिखे एक यात्रा विवरण में बताया है कि उसने कभी ए सी क्लास में यात्रा नहीं की। उन्होंने तब तक तीसरे, ड्योढ़े( शायद यह इंटर क्लास का अनुवाद है) और कभी कभी दूसरे दर्जे में सफर किया है।तीसरे दर्जे में यात्रा के औचित्य के बारे में उन्होंने लिखा है कि वह किसी सिद्धांत के कारण नहीं बल्कि पैसों की जरूरत के कारण की गई यात्राएं हैं।एक बार वह धीमे चलनेवाली रेल से दो रात और एक दिन का कुल छत्तीस घंटे का सफर करके मुंबई से लखनऊ आए थे। इसके दो उद्देश्य थे-खूब सोना और खूब पढ़ना।
उन्होंने उन तमाम किताबों के नाम दिए हैं,जो उन्होंने इस यात्रा के दौरान पढ़ीं। बरसात के दिनों में एक हवाई यात्रा का भी विवरण है।लंबी रेल यात्राओं में वह बक्साभर किताबें साथ ले जाते थे।बाद में पढ़ने की योजना के साथ जाते दूसरे दर्जे में सफर करते थे।सब किताबें तो पढ़ नहीं पाते थे मगर वह लिखते हैं कि अपने आसपास किताबों का होना उन्हें संतोष देता है। उनका बहुत कुछ पढ़ना रेल यात्राओं में ही हुआ है।बाकी तो सारा समय राजनीतिक व्यस्तताओं में चला जाता था।
इस किताब में शादी के ठीक बाद हिमालय की एक चुनौती भरी और खतरनाक यात्रा का विवरण है। गढ़वाल यात्रा, सूरमा घाटी, कश्मीर यात्रा, श्री लंका और चीन की यात्राओं के रोचक विवरण हैं।
यह टिप्पणी उस समय नेहरू जी ही कर सकते थे कि ‘ राजनीति तो अधिकतर एक कठपुतली का तमाशा है ,जिसके पीछे कुछ ऐसी छिपी और अक्सर खुली शक्तियां हैं, जो उसको चलाती हैं।’बहरहाल अपनी एक बनारस की यात्रा में वह शिवप्रसाद गुप्त से मिले थे। वह स्वीकार करते हैं कि उन्होंने हिंदी साहित्य कम पढ़ा है मगर उनकी दिलचस्पी इसमें थी।एक दिन उन्होंने ‘ विशाल भारत ‘ में एक लेख पढ़ा कि हिंदी में आज ऐसे लेखक हैं, जो शेक्सपियर से लेकर तोल्स्तोय और बर्नाड शॉ तक की कोटि के हैं। उन्हें यह जानकार खुशी हुई। उन्होंने मित्रों से कह कर हिंदी की ऐसी किताबें मंगवाईं लेकिन उनकी आशाएं पूरी नहीं हुईं। उन्होंने इससे कोई अंतिम निष्कर्ष नहीं निकाला बल्कि कहा कि शायद उनके पास ठीक पुस्तकें न आई हों। उन्होंने ‘ विशाल भारत ‘ के संपादक तथा अन्य साहित्य- प्रेमियों से सौ या पचास ऐसी किताबों की सूची देने का अनुरोध किया था,जो सचमुच क्लासिक हों।
और भी बहुत कुछ है इस किताब में।
विष्णु नागर की फेसबुक पोस्ट