हिंदुस्तान की कहानी :जवाहरलाल नेहरू – चेप्टर 2 बेडेनवाइलर लोज़ान: भाग -४ : १९३५ का बड़ा दिन

कमला की हालत कुछ सुबरी। सुधार कुछ बहुत जाहिर तो नहीं था, लेकिन पिछले हफ़्तों की चिता के बाद हम लोगों ने कुछ आराम महसूस किया। वह अपना नाजुक वक़्त पारकर ले गई थी और उसकी हालत संभली हुई थी और यह एक सुधार था। उसकी यह हालत एक महीने तक जारी रही, और इससे लाभ उठाकर अपनी बेटी इंदिरा के साथ मैं कुछ दिनों के लिए इंग्लिस्तान हो आया। वहां मैं आठ साल से नहीं गया था और कई दोस्तों का इसरार था कि मैं उनसे मिलूं ।

मैं बेडेनवाइलर वापस आया और पुरानी दिनचर्या फिर से शुरू हुई। जाड़ा आ गया था। जमीन बर्फ से ढंककर सफ़ेद हो रही थी। ज्योंही बड़ा दिन करीब आया, कमला की हालत साफ़ तौर पर गिरने लगी। ऐसा जान पड़ता था कि नाजुक वक़्त लौट आया है और उसकी जिंदगी एक धागे से लटक रही है। १९३५ के उन अंतिम दिनों में मैं बर्फ और बर्फानी कीचड़ के बीच रास्ता काटता रहा, और यह नहीं जानता था कि वह कितने दिन या घंटों की मेहमान है। जाड़े का शांत दृश्य, जिस पर बर्फ की सफेद चादर पड़ी हुई थी, मुझे ठंडी मौत की शांति जैसा लगा और मैं अपना पिछला आशावाद खो बैठा ।

लेकिन कमला इस संकट-काल से भी लड़ी और अचरज-मरी शक्ति से उसे पार कर गई। वह अच्छी होने लगी और ज्यादा खुश दिखाई देती। उसने चाहा कि हम लोग उसे बेडेनवाइलर से हटाकर दूसरी जगह ले चलें। वह उस जगह से ऊब गई थी। एक दूसरी वजह, जिससे उसे अब वह जगह अच्छी नहीं लगती थी, यह थी कि स्वास्थ्य-गृह का एक दूसरा मरीज जाता रहा। वह कमला के पास कभी-कभी फूल भेज दिया करता था और उससे मिलने भी आया करता था। यह मरीज, जो एक आयरिश लड़का था, कमला के मुक़ाबले में कहीं अच्छी हालत में था; यहांतक कि उसे टहलने की इजाजत मिल गई थी। उसकी अचानक मौत की खबर मैंने कमला तक पहुंचने से रोकनी चाही, लेकिन इसमें हम कामयाब न रहे। मरीजों को, खासकर उन्हें, जिन्हें स्वास्थ्य-गृह में ठहरने का दुर्भाग्य होता है, जान पड़ता है एक रौबी जानकारी हासिल हो जाती है, और यह उन्हें बहुत-कुछ वे बातें जता देती है, जो उनसे छिपाई जाती हैं।

जनवरी में मैं कुछ दिनों के लिए पेरिस गया और थोड़े वक़्त के लिए लंदन भी हो आया। जिदगी मुझे अपनी तरफ़ फिर खीच रही थी और लंदन में मुझे खबर मिली कि मैं हमारी कांगेस का दूसरी बार सभापति चुना गया हूं और यह कांग्रेस अप्रैल में होनेवाली है। दोस्तों ने मुझे पहले से आगाह कर दिया था, इसलिए यह फ़ैसला एक तरह से जाना हुआ था और इसके बारे में मैंने कमला से बातचीत की थी। मेरे सामने एक दुविधा आकर खड़ी हो गई- उसे इस हालत में छोड़कर जाऊं या सभापति के पद से इस्तीफ़ा दे दूं। वह नहीं चाहती थी कि मैं इस्तीफ़ा दूं। उसकी हालत जरा सुघरी हुई थी और हम लोगों ने सोचा कि मैं बाद में फिर उसके पास आ सकता हूं। १९३६ की जनवरी के अंत में कमला ने बेडेनवाइलर छोड़ा और स्विजरलैंड में लोजान के स्वास्थ्य-गृह में वह पहुंचाई गई ।

जारी….

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