हिंदुस्तान की कहानी :जवाहरलाल नेहरू – चेप्टर 2 बेडेनवाइलर लोज़ान: – भाग   ५ : मृत्यु

हम दोनों ने ही स्विजरलैंड में आने से जो तबदीली हुई, उसे पसंद किया। कमला अब ज्यादा खुश रहती और स्विजरलैंड के इस हिस्से से पहले से अच्छी तरह परिचित। होने के के कारण मैंने यहां अपने को उतना अजनबी महसूस न किया। उसकी हालत में कोई जाहिरा तबदीली न पैदा हुई थी और ऐसा मालूम देता था कि कोई संकट सामने नहीं है। सुधार की रफ़्तार शायद धीमी रहती, लेकिन जान पड़ता था कि काफ़ी वक़्त तक उसकी ऐसी ही हालत रहेगी ।

इस वीच में हिंदुस्तान का बुलावा बराबर आ रहा था और वहां मित्र लोग मुझे लौटने के लिए जोर दे रहे थे। मेरा जी बेचैन रहने लगा और हिंदुस्तान के मसलों में उलझा रहने लगा। कुछ सालों से, जेल में रहने की वजह से या और वजहों से, सार्वजनिक कामों में मैं सरगरमी से हिस्सा न ले सका था और अब मैं बागडोर तुड़ा रहा था। लंदन और पेरिस के मेरे सफ़र ने और हिंदुस्तान से आनेवाली खबरों ने मुझे जगाया और अब चुपचाप रहना मुमकिन न था। मैंने कमला के साथ इसके बारे में विचार किया और डाक्टर से भी सलाह ली। दोनों इस बात पर राजी हुए कि मुझे हिंदुस्तान लौटना चाहिए और मैंने डच के० एल० एम० कंपनी के हवाई जहाज से लौटने के लिएजगह पक्की कर ली। २८ फ़रवरी को मैं लोजान छोड़नेवाला था। यह सब तय हो चुकने के बाद मैंने देखा कि कमला को मेरा उसे छोड़ने का विचार पसंद न आया। फिर भी वह मुझसे अपना कार्यक्रम बदलने के लिए कहना न चाहती थी। मैंने तो उससे कहा कि हिंदुस्तान में ज्यादा दिन न ठहरूंगा। दो-तीन महीनों में ही लौट आने की उम्मीद करता हूं। वह चाहे, तो मैं पहले भी आ सकता हूं; तार से खबर मिलने के एक हफ्ते के भीतर मैं वापस आ सकूंगा।

चलने की तारीख के चार-पांच दिन रह गए थे। इंदिरा, जो पास ही एक जगह, बेक्स, के स्कूल में, भरती हो गई थी, यह आखिरी दिन हम लोगों के साथ बिताने के लिए आनेवाली थी। डाक्टर मेरे पास आये और उन्होंने सलाह दी कि मैं अपना जाना हप्ता-दस दिन के लिए मुल्तवी कर दूं। इससे ज्यादा वह कहना नहीं चाहते थे। मैं फ़ौरन राजी हो गया और बाद में चलनेवाले दूसरे के० एल० एम० हवाई जहाज में जगह ठीक कर ली। ज्यों-ज्यों ये आखिरी दिन बीतने लगे, कमला में अचानक तबदीली आती जान पड़ी। उसके जिस्म की हालत, जहां तक हम देख सकते थे, वैसी ही थी, लेकिन उसका दिमारा अपने इर्द-गिर्द की चीजों पर कम ठहरता। वह मुझसे कहती कि कोई उसे बुला रहा है या यह कि उसने किसी शक्ल या आदमी को कमरे में आते देखा, जबकि मैं कुछ न देख पाता था।

२८ फ़रवरी को, वहुन सबेरे उसने अपनी आखिरी सांस ली। इंदिरा वहां मौजूद थी, और हमारे सच्चे दोस्त और इन महीनों के निरंतर साथी डाक्टर अटल भी मौजूद थे ।

कुछ और मित्र स्विजरलैंड के पास के गहरों से आ पहुंचे और हम उसे लोजान के दाहघर में ले गए। चंद मिनटों में यह सुंदर शरीर और प्यारा मुखड़ा, जिस पर अकसर मुस्कराहट छाई रहती थी, जलकर खाक हो गया। और अब हमारे पास सिर्फ एक बरतन रहा, जिसमें उस सतेज, आबदार और जीवन से लहलहाते प्राणो की अस्थियां हमने भर ली थीं।

जारी….

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