हिंदुस्तान की कहानी:जवाहरलाल नेहरू– चेप्टर 3 : तलाश भाग – ५ : भारत माता


अकसर जब मैं एक जलसे से दूसरे जलसे में जाता होता, और इस तरह चक्कर काटता रहता होता था, तो इन जलसों में मैं अपने सुननेवालों से अपने इस हिंदुस्तान या भारत की चर्चा करता। भारत एक संस्कृत शब्द है और इस जाति के परंपरागत संस्थापक के नाम से निकला हुआ है। मैं शहरों में ऐसा बहुत कम करता, क्योंकि वहां के सुननेवाले कुछ ज्यादा सयाने थे और उन्हें दूसरे ही क़िस्म की गिजा की जरूरत थी। लेकिन किसानों से, जिनका नजरिया महदूद था, मैं इस बड़े देश की चर्चा करता, जिसकी आजादी के लिए हम लोग कोशिश कर रहे थे और बताता कि किस तरह देश का एक हिस्सा दूसरे से जुदा होते हुए भी हिंदुस्तान एक था। मैं उन मसलों का जिक्र • करता, जो उत्तर से लेकर दक्खिन तक और पूरब से लेकर पच्छिम तक, किसानो के लिए यकसां थे, और स्वराज्य का भी जिक्र करता, जो थोड़े लोगों के लिए नहीं, बल्कि समो के फ़ायदे के लिए हो सकता था। में उत्तर-पच्छिम में खैबर के दरें से लेकर घुर दक्खिन में कन्याकुमारी तक की अपनी यात्रा का हाल बताता और यह कहता कि सभी जगह किसान मुझसे एक-से सवाल करते, क्योंकि उनकी तकलीफ़ एक-सो थीं- यानी गरीबी, कर्ज, पूंजीपतियों के शिकंजे, जमींदार, महाजन, कड़े लगान और सूद, पुलिस के जुल्म, बौर में सभी बाते गुथी हुई थीं, उस ढड्डे के साथ, जिसे एक विदेशी सरकार ने हम पर लाद रखा था और इनसे छुटकारा भी सभी को हासिल करना था। मैंने इस बात की कोशिश की कि लोग सारे हिंदुस्तान के बारे में सोचें और कुछ हद तक इस बड़ी दुनिया के बारे में मी, जिसके हम एक जुब है। मैं अपनो बातचीत में चोन-स्पेन, अबोसिनिया, मध्य-यूरोप, मित्र और पच्छिमी एशिया में होनेवालो कशमकशों का जिक्र भी ले बता। मैं उन्हें सोवियत यूनियन में होनेवाली अचरज-भरी तवदीलियों का हाल भी बताता बौर कहता कि अमरीका ने कैसी तरक्की की है। यह काम आसान न था, लेकिन जैसा मैंने समझ रखा था, वैसा मुश्किल भी न था। इसकी बवह यह यो कि हमारे पुराने महाकाव्यों ने और पुराणों की कथा-कहानियों ने, जिन्हें वे खूब जानते थे, उन्हें इस देश की कल्पना करा दी थी, बोर हुनेवा कुछ लोग ऐसे मिल जाते थे, जिन्होंने हमारे बड़े-बड़े तीयों की यात्रा कर रखी थी, जो हिंदुस्तान के चारों कोनों पर हैं। या हमें पुराने सिपाही मिल जाते, जिन्होंने पिछली बड़ी जंग में या और घावों के सिलसिले में विदेशों में नोक- रियां की थी। सन तीस के बाद जो आर्थिक मंदी पैदा हुई थी, उसकी बवह ते दूसरे मुल्कों के बारे में मेरे हवाले उनकी समझ में आ बाते थे।

कभी ऐसा भी होता कि जब मैं किसी जलसे में पहुंचता, तो मेरा स्वागत “भारत माता की जय !” इस नारे से जोर के साथ किया जाता। लोगों ने अचानक पूछ बैठता कि इस नारे से उनका क्या मतलब है? यह भारत माता कौन है, जिसको वे जय चाहते हैं। मेरे सवाल से उन्हें कुतुहल और ताज्जुब होता और बऔर कुछ जवाब न बन पड़ने पर वे एक-दूसरे की तरफ या मेरी तरफ देखने लग जाते। मैं सवाल करता हो रहता। आखिर एक हई-कहे जाट ने, जो अनगिनत पोड़ियों से किसानी करता बाया था, जवाब दिया कि भारत माता से उनका मतलब धरती ने है। कौनसी बरतो? खान उनके गांव को बरती, या जिले की या सूबे की या सारे हिंदुस्तान की बरती सेनाका मतलब है? इस तरह सवाल-जवाब चलते रहते यहांतक कि वे अबकर मुझसे कहने लगते कि मैं ही बताऊं मैं इसकी कोशिश करता और बताता कि हिदुस्तान वह सब कुछ है, जिसे उन्होंने समझ रखा है, लेकिन वह इससे भा बहुत ज्यादा है। हिंदुस्तान के नदी और पहाड़, जंगल और खेत, जो हमे अन्न देत है, ये सभा हमे अजीज हैं। लेकिन आखिरकार जिनकी गिनती है, वे है हिंदुस्तान के लोग, उनके और मेरे-जैसे लोग, जो इस सारे देश में फैले हुए है। भारत माता दरअसल यही करोड़ों लोग हैं, और “मारत माता की जय !” से मतलब हुआ इन लोगों की जय का। मैं उनसे कहता कि तुम इस भारत माता के अंश हो, एक तरह से तुम ही भारत माता हो, और जैसे- जैसे ये विचार उनके मन में वठते, उनका आखों में चमक आ जाती, इस तरह, मानो उन्होंने कोई बड़ी खोज कर ली हो।

जारी …

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